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'चलो दिल्ली!' नरेगा मजदूरों ने नरेगा के फिर से मज़बूत होने तक संघर्ष जारी रखने का प्रस्ताव पारित किया

- नरेगा संघर्ष मोर्चा 

नरेगा मज़दूरों का पहला क्षेत्रीय सम्मेलन 29 सितंबर 2024 को झारखंड के रांची में झारखंड नरेगा वॉच और नरेगा संघर्ष मोर्चा द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। सम्मेलन में 100 से अधिक नरेगा और असंगठित मज़दूरों ने भाग लिया। सम्मेलन में पाँच राज्यों - झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार - और इन राज्यों के लगभग दस मज़दूर संगठनों ने भाग लिया। यह सम्मेलन श्रमिकों द्वारा रोज़गार की गारंटी, समय पर मज़दूरी का भुगतान और मनमाने ढंग से काम  दिए जाने की मांग को लेकर झारखंड के रांची में राजभवन के सामने धरना देने के एक दिन बाद आयोजित किया गया था। 
क्षेत्रीय सम्मेलन में झारखंड नरेगा वॉच, जन जागरण शक्ति संगठन (बिहार), पश्चिम बंगाल खेत मजदूर समिति (पश्चिम बंगाल), नरेगा वॉच (बिहार), ओडिशा श्रमजीवी मंच, भोजन और काम का अधिकार अभियान (पश्चिम बंगाल), छत्तीसगढ़ किसान मज़दूर संगठन, प्रवासी मज़दूर संगठन (बिहार) और उदायनी सोशल एक्शन फोरम (पश्चिम बंगाल) सहित विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। पिछले साल, नरेगा संघर्ष मोर्चा द्वारा नई दिल्ली में नरेगा मज़दूरों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। आजीविका के सार्वभौमिक अधिकार और सम्मान के साथ जीवन के अधिकार के लिए गहराई से प्रतिबद्ध, प्रतिभागियों ने महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) के कामकाज को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों पर चर्चा और बहस की और नरेगा को इसके अक्षरशः लागू करने के तरीकों पर विचार-विमर्श किया। जैसा हम देख सकते हैं, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में नरेगा की स्थिति बहुत खराब और उसका भविष्य बहुत खतरे में है। जैसा कि पिछले दिन धरने में कई बात कहा गया था, “नरेगा अब लंबे समय से आईसीयू में है”। 
सम्मेलन में दो मुख्य सत्र हुए, एक में मज़दूरों ने नरेगा में आने वाली चुनौतियों के अपने अनुभव साझा किए और दूसरे में नरेगा में चुनौतियों की पेचीदगियों पर समानांतर सत्र आयोजित किए गए। साझा किए गए अनुभव अपने विवरणों में भिन्न थे, लेकिन सभी राज्यों में मोटे तौर पर समान थे, जैसे - गारंटीकृत रोज़गार की कमी, मज़दूरी के भुगतान में देरी, अपर्याप्त मज़दूरी मुआवज़ा, काम के प्रावधान में मनमानी तकनीक-प्रेरित बहिष्करण, नेशनल मुबाइल मॉनिटरिंग एप (एनएमएमएस) और आधार-बेस्ड पेमेंट सिस्टम (एबीपीएस) जैसी मज़दूर-विरोधी तकनीकों का जारी रहना आदि। 
समानांतर सत्र में मनरेगा श्रमिकों को काम की उपलब्धता की स्थिति, कार्यस्थल/वर्क साईट में सुविधाऐं, मज़दूरी के घंटे, मज़दूरी दर और मज़दूरी भुगतान से संबंधित मुद्दों पर सत्र शामिल थे; मनरेगा में शारीरिक रूप से विकलांग लोगों और आदिम जनजातियों, विशेषकर महिलाओं की रोजगार स्थिति; मनरेगा में प्रौद्योगिकी का अत्यधिक उपयोग और सुझाए गए विकल्प आदि। 
इन सत्रों में साझा की गई चर्चाओं और अंतर्दृष्टि से यह साफ़ था कि “मज़दूर विरोधी व्यवस्था द्वारा लागू किए गए मज़दूर समर्थक (इस) कानून” के लिए अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए सामूहिक संघर्ष एक लंबी सड़क होगी और फिर भी हमें संघर्ष करना जारी रखना होगा। कई मज़दूरों और उनके परिवारों के लिए, नरेगा के माध्यम से अर्जित मज़दूरी न केवल आजीविका का स्रोत है, बल्कि जीवित रहने का साधन भी है। सम्मेलन का समापन ग्रामीण मज़दूरों द्वारा केंद्र और राज्य सरकारों को दिए गए संदेश के एक शक्तिशाली नोट पर हुआ: नरेगा में उचित मज़दूरी पर काम करना हमारा अधिकार है, हम इसे नहीं जाने देंगे! हम अपनी आवाज़ बुलंद करने और अपने अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए दिल्ली तक आवाज़ उठाएँगे! 

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