28 सितंबर 2024 को एक शक्तिशाली विरोध प्रदर्शन में नरेगा के २०० मज़दूर रांची के राजभवन के समक्ष एकत्र हुए, और मोदी सरकार द्वारा उनके अधिकारों पर लगातार हमलों और नरेगा को व्यवस्थित रूप से खत्म करने की निंदा की। झारखंड नरेगा वॉच और नरेगा संघर्ष मोर्चा द्वारा आयोजित धरने में झारखंड के साथ-साथ बिहार, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के मज़दूरों ने नरेगा कानून को सही तरह से लागू करने की मांग की - समय पर मजदूरी का भुगतान, रोजगार की गारंटी और बहिष्कार के बिना काम मिलना। भगत सिंह की जयंती पर उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए आदिवासी अधिकार मंच के प्रफुल लिंडा ने मज़दूरों से आह्वान किया कि वे गरीब विरोधी, पूंजीपति केंद्र सरकार के खिलाफ खड़े हो। झारखंड मजदूर संगठन और झारखंड किसान परिषद के प्रतिनिधि भी मज़दूरों को समर्थन देते हुए धरने में शामिल हुए।
मज़दूर ऑनलइने हाज़री (एनएमएमएस) और आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) जैसी श्रमिक-विरोधी तकनीकों को तत्काल उलटने की मांग कर रहे हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर की माहेश्वरी ने बताया कि कैसे उनकी पंचायत में एनएमएमएस के कारण मज़दूरों को उनकी मजदूरी से वंचित किया जाता है, काम पूरा करने के बावजूद ये ही सुनने मिलता है कि उनका नाम मस्टर रोल में नहीं था। मज़दूरों का दावा है कि इन तकनीकिओं के कारण वेतन भुगतान में देरी हो रही है, काम से इनकार किया जा रहा है, और परिणामस्वरूप को कमजोर किया जा रहा है।
एक गंभीर मुद्दा यह उठाया गया कि दिसंबर 2021 से पश्चिम बंगाल में नरेगा काम पूर्ण रूप से बंद पड़ा है। कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए, केंद्र सरकार ने मनरेगा कानून की धारा 27 के तहत पश्चिम बंगाल के लिए नरेगा राशि पर रोक लगा दी है। इस कारण पश्चिम बंगाल के हजारों मज़दूरों को निलंबन से पहले पूरे किए गए काम के लिए मज़दूरी नहीं मिली है और न ही लगभग तीन वर्षों से नरेगा के तहत कोई काम मिला है। पुरुलिया जिले के अंबरीश ने भ्रष्टाचार के लिए मज़दूरों को सज़ा देने वाली केंद्र सरकार का बहिष्कार करते हुए मांग की कि कथित भ्रष्टाचार के जांच के बावजूद नरेगा का काम जारी रहना चाहिए।
दूसरी ओर झारखंड में, क़ानून का साफ़ उल्लंघन करते हुए नरेगा के कामों में जेसीबी मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है और बिचौलिए मज़दूरों की आधे से ज़्यादा मजदूरी छीन लेते हैं। फिर भी इन प्रथाओं पर अंत लगाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति का पूर्ण अभाव है, जिससे मज़दूर बिचौलियों और असंवेदनशील राज्य के बीच फंस जाते हैं। मज़दूरों की मांग है कि मनरेगा में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए सरकार को सामाजिक आंकेक्षण और शिकायत निवारण को मजबूत करने की दिशा में काम करना चाहिए और लोगों की जवाबदेही बढ़ाने के लिए इन प्रक्रियाओं की स्वतंत्रता सुनिश्चित करनी चाहिए। राज्य चुनाव करीब हैं, और एक बात साफ़ है: मज़दूरों का वोट उन्हें ही जाएगा जो मनरेगा को मज़बूत करेगा।
मज़दूरों ने यह बात भी उठायी कि ग्रामीण विकास मंत्री के साथ बातचीत करने के उनके बार-बार प्रयासों के बावजूद, उन्हें केवल टूटे हुए वादे ही मिले हैं। सबसे हालिया निराशा पिछले हफ्ते ही आई जब 24 सितंबर, 2024 को एक निर्धारित बैठक बिना कोई कारण दिए अचानक रद्द कर दी गई। इस बैठक में देश भर के नरेगा मज़दूर संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना था, लेकिन छह प्रस्तावित मज़दूर प्रतिनिधियों में से केवल एक को ग्रामीण विकास मंत्रालय से अनुमति दी गयी. यह पीड़ित मज़दूरों की आवाज़ सुनने के लिए मंत्रालय की अनिच्छा का एक और सबूत है।
बढ़ती गरीबी और बेरोजगारी के तहत नरेगा का महत्व और बढ़ गया है। कई मज़दूरों और उनके परिवारों के लिए नरेगा न केवल रोज़गार का एक स्रोत है, बल्कि जीवित रहने का साधन भी है। केंद्र और राज्य सरकारों को ग्रामीण मज़दूरों का संदेश ज़ोरदार और स्पष्ट है: उचित मजदूरी पर नरेगा काम हमारा अधिकार है, हम इसे जाने नहीं देंगे!
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