सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

बंग्लादेश की स्थिति पर भारतवासियों को उदासीन रहने की नहीं, गहराई से सोचने की ज़रूरत है

- अजय तिवारी 
भारतवासियों को बंग्लादेश की स्थिति पर गहराई से सोचना चाहिए। उसका असर भारत पर भी अनेक रूपों में पड़ेगा। लेकिन सबसे गम्भीर पहलू यह है कि बिखरे हुए आंदोलनकारी और संगठित इस्लामी तत्ववादियों के बीच भविष्य को लेकर जो रस्साकशी है उसमें बंग्लादेश की मूल भावना और उसके सामाजिक जीवन का विनाश तय है। इसका एक ही उदाहरण काफ़ी है कि जन-असन्तोष रोजगार और आरक्षण की पक्षपातपूर्ण को लेकर है लेकिन आंदोलन में शामिल इस्लामी छात्र-संगठन ने हिंदुओं पर व्यापक हमले किये। आम नागरिक मिलजुलकर मंदिरों की रक्षा कर रहे थे लेकिन इस्लामी छात्र संगठन मंदिरों पर हमले कर रहे हैं। 
बंग्लादेश का आविर्भाव एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में हुआ था लेकिन पहले से मौजूद इस्लामी तत्ववादियों ने सेना की मदद से बार-बार तख्तापलट किया। 
देखने की बात है कि जनअसंतोष के उबाल के दौरान निहित स्वार्थ की शक्तियाँ अल्पसंख्यकों और कमज़ोरों पर हमले करते हैं। यह भारत में देखिए, पाकिस्तान में देखिए, बांग्लादेश में भी देखिए। 
इससे पता चलता है कि किसी भी समय इतिहास की करवट में पहले से निश्चित नहीं होता कि कल क्या होगा। परस्पर विरोधी ताकतें दिशा तय करने के लिए टकराती हैं। जिसके पास अधिक कुशल रणनीति, सक्षम संगठन और सामाजिक समर्थन होता है, वह विजयी होता है। 
आधुनिक संसार में एक बात और है। जनता की इच्छा एक तरफ, सेना की मर्ज़ी दूसरी तरफ; राष्ट्रीय भावना एक तरफ, अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप दूसरी तरफ--परिवर्तन की दिशा किसी एक बात से तय नहीं होती। 
 राजकीय भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट के बीच तनाव, पक्षपातपूर्ण आरक्षण नीति और सामाजिक सद्भाव के बीच तनाव, भारत जौसे विकासशील देशों से सम्बंध और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से अमरीकी दबाव के बीच तनाव--काफ़ी उलझी हुई परिस्थिति है। यह उल्लेख करने की बात है कि बंग्लादेश में इस्लामी तत्ववादियों के ज़रिए इतना बड़ा उलटफेर करने की "योजना" लंदन में बनी थी और लंदन में शरण मिलने से मना हो जाने पर शेख़ हसीना को अनिश्चितकाल तक भारत में रहना होगा। 
हम भारत की इस नीति का समर्थन करते हैं क्योंकि यह हमारी अतिथि सत्कार की परंपरा के अनुरूप भी है और पड़ोसी देश के साथ मानवीय सद्भाव की आधुनिक भावना के अनुरूप भी। 
यह बात भी उल्लेखनीय हैं कि बंग्लादेश में तख्तापलट करने वाले कारक हैं: इस्लामी तत्ववादी, सेना, दक्षिणपंथी राजनीतिक संगठन और उनके मददगार हैं कंजरवेटिव (रुढ़िवादी) ब्रिटेन एवं अमरीका; उसी ब्रिटिश संसद में हसीना की भांजी लेबर पार्टी की सांसद हैं! अफ़सोस की बात है कि ब्रिटेन की कंजरवेटिव सरकार के निवर्तमान प्रधानमंत्री भारतीय मूल के ऋषि सुनक की नितियाँ घोर विनाशकारी रही हैं! 
बंग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, वह न केवल बंगलादेशियों के लिए वरन पूरे एशिया महाद्वीप के लिए अत्यंत घातक है। इसलिए भारतवासियों को उदासीन रहने की ज़रूरत नहीं है, गहराई से सोचने की ज़रूरत है।

टिप्पणियाँ

ट्रेंडिंग

સીતારામ યેચુરી માટે રાષ્ટ્ર અને તેના લોકોની જરૂરિયાતો વ્યક્તિગત મહત્વાકાંક્ષાઓથી ઉપર હતી

- રમેશ સવાણી  જીવંત, નમ્ર, સમાજ સાથે જોડાયેલા CPI(M)ના નેતા સીતારામ યેચુરી (12 ઓગસ્ટ 1952/ 12 સપ્ટેમ્બર 2024) 72મા વર્ષે આપણને છોડી ગયા છે. અત્યંત પ્રતિભાશાળી નેતા તરીકે, તેમણે ભારતીય રાજકારણમાં મહત્વપૂર્ણ સ્થાન મેળવ્યું અને માર્ક્સવાદી વિચારધારાનું ચમકતું પ્રતીક બની ગયા. વિચારો પ્રત્યેની પ્રતિબદ્ધતા, સત્યતા અને પ્રમાણિકતા માટે તેમણે લોકોને પ્રભાવિત કર્યા હતા. આપણે તેજસ્વી પ્રતિનિધિ ગુમાવ્યા છે. 

आरएसएस को लगता है चुनाव में भाजपा की सीटों में गिरावट का मुख्य कारण है दलित वोटों का इंडिया गठबंधन की ओर खिसक जाना

- राम पुनियानी*  भाजपा के लिए सन 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे निराशाजनक रहे. लोकसभा में उसके सदस्यों की संख्या 303 से घट कर 240 रह गई. नतीजा यह कि पिछली बार जहाँ केवल नाम की गठबंधन (एनडीए) सरकार थी वहीं इस बार सरकार वास्तव में एक पार्टी की न होकर गठबंधन की नज़र आ रही है. पिछली और उसकी पिछली सरकारों में गठबंधन दलों की सुनने वाला कोई नहीं था. मगर अब इस बात की काफी अधिक संभावना है कि गठबंधन के साथी दलों की राय ओर मांगों को सरकार सुनेगी और उन पर विचार करेगी. इसके चलते भाजपा अपना हिन्दू राष्ट्रवादी एजेंडा उतनी आसानी से लागू नहीं कर पाएगी, जितना पहले कर लेती थी. इसके अलावा, इंडिया गठबंधन की ताकत में भी इजाफा हुआ है और राहुल गाँधी की लोकप्रियता में भी बढ़ोत्तरी हुई है. विपक्ष अब अपनी बात ज्यादा दमख़म से कह पा रहा है. 

संथाल परगना के बांग्ला-भाषी मुसलमान भारतीय हैं और न कि बांग्लादेशी घुसपैठिये

- झारखंड जनाधिकार महासभा*  हाल के दिनों में भाजपा लगातार प्रचार कर रही है कि संथाल परगना में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए आ रहे हैं जो  आदिवासियों की ज़मीन हथिया रहे है, आदीवासी महिलाओं  से शादी कर रहे हैं और आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है. क्षेत्र में हाल की कई हिंसा की घटनाओं को जोड़ते हुए इन दावों पर सामाजिक व राजनैतिक माहौल बनाया जा रहा है. ज़मीनी सच्चाई समझने के लिए झारखंड जनाधिकार महासभा व लोकतंत्र बचाओ अभियान के एक प्रतिनिधिमंडल ने संथाल परगना जाकर हर सम्बंधित मामले का तथ्यान्वेषण किया. पाए गए तथ्यों को प्रेस क्लब, रांची में प्रेस वार्ता में साझा किया गया. 

भारत में मुसलमानों और ईसाईयों के बारे में गलत धारणाएं ही उनके खिलाफ हिंसा की मुख्य वजह

- राम पुनियानी*  जुलाई 2024 में इंग्लैड के कई शहरों में दंगे और उपद्रव हुए. इनकी मुख्य वजह थीं झूठी खबरें और लोगों में अप्रवासी विरोधी भावनाएं. अधिकांश दंगा पीड़ित मुसलमान थे. मस्जिदों और उन स्थानों पर हमले हुए जहां अप्रवासी रह रहे थे. इन घटनाओं के बाद यूके के ‘सर्वदलीय संसदीय समूह’ ने भविष्य में ऐसी हिंसा न हो, इस उद्देश्य से एक रपट जारी की. रपट में कहा गया कि “मुसलमान तलवार की नोंक पर इस्लाम फैलाते हैं” कहने पर पाबंदी लगा दी जाए. इस्लामोफोबिया की जड़ में जो बातें हैं, उनमें से एक यह मान्यता भी है.

झारखंड उच्च न्यायलय में केंद्र ने माना, संथाल परगना में ज़मीन विवाद में बांग्लादेशी घुसपैठियों का जुड़ाव नहीं

- झारखंड जनाधिकार महासभा  संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ मामले में झारखंड उच्च न्यायलय में केंद्र सरकार ने 12 सितम्बर 2024 को दर्ज हलफ़नामा में माना है कि हाल के ज़मीन विवाद के मामलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों का जुड़ाव स्थापित नहीं हुआ है. उच्च न्यायलय में भाजपा कार्यकर्ता द्वारा दर्ज PIL में दावा किया गया था कि बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा आदिवासियों से  शादी कर ज़मीन लूटी जा रही है व घुसपैठ हो रही है.  

डबल बुलडोज़र भाजपा राज नहीं चाहिए, हेमंत सरकार जन वादे निभाए: ग्रामीणों की आवाज़

- झारखंड जनाधिकार महासभा  आज राज्य के विभिन्न जिलों से 2000 से अधिक लोग राजधानी रांची पहुंचे और हेमंत सोरेन सरकार को अपूर्ण वादों और झारखंड से भाजपा को भगाने की ज़रूरत को याद दिलाए. झारखंड जनाधिकार महासभा ने राज भवन के समक्ष धरने का आयोजन किया. धरने में आये लोगों के नारे “भाजपा हटाओ, झारखंड बचाओ” और “हेमंत सोरेन सरकार, जन मुद्दों पर वादा निभाओ” क्षेत्र में गूँज रहा था.

जाति जनगणना पर दुष्प्रचार का उद्देश्य: जाति को ऐसी सकारात्मक संस्था बताना, जो हिन्दू राष्ट्र की रक्षा करती आई है

- राम पुनियानी*  पिछले आम चुनाव (अप्रैल-मई 2024) में जाति जनगणना एक महत्वपूर्ण मुद्दा थी. इंडिया गठबंधन ने जाति जनगणना की आवश्यकता पर जोर दिया जबकि भाजपा ने इसकी खिलाफत की. जाति जनगणना के संबंध में विपक्षी पार्टियों की सोच एकदम साफ़ और स्पष्ट है.