सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भाजपा अपने आप को आपातकाल के प्रतिरोध का नायक सिद्ध करना चाहती हैं. सच क्या है?

- राम पुनियानी* 

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला तरह-तरह के विवादों के घेरे में रहे हैं. हाल में लोकसभा अध्यक्ष बतौर अपने दूसरे कार्यकाल में पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद उन्होंने आपातकाल के विरुद्ध एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया. आपातकाल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा 1975 में लगाया गया था. इसकी पृष्ठभूमि में था जयप्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व में चल रहा संपूर्ण क्रांति आन्दोलन.
गुजरात में कुछ विद्यार्थियों ने अपनी हॉस्टल के मेस के बिल में बढ़ोत्तरी के खिलाफ आन्दोलन शुरू किया. जल्दी ही बिहार के विद्यार्थी भी इसमें शामिल हो गए. आन्दोलन गति पकड़ता गया और विद्यार्थियों ने जेपी से राष्ट्रीय स्तर पर आन्दोलन का नेतृत्व सम्हलने का अनुरोध किया. जेपी ने विधानसभाओं और संसद के घेराव का आव्हान किया. दिल्ली के रामलीला मैदान में 15 जून 1975 को आयोजित एक विशाल रैली में जेपी ने पुलिस और सेना का आव्हान किया कि वो सरकार के आदेश न माने. इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को चुनौती दी गयी और इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने बहुत मामूली आधारों पर उसे रद्द कर दिया. उच्चतम न्यायालय ने 24 जून 1975 को इस आदेश पर रोक लगा दी.
देश के बिगड़ते हालात हो देखते हुए इंदिरा गाँधी ने 25 जून 1975 को संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत देश में आपातकाल लगा दिया. आपातकाल 21 महीने तक लागू रहा और श्रीमती गाँधी ने स्वयं उसे ख़त्म किया. यवतमाल में 24 जनवरी 1978 को एक सभा में बोलते हुए इंदिरा गाँधी ने आपातकाल में हुई ज्यादतियों के लिए खेद व्यक्त किया. राहुल गाँधी भी उस दौरान हुई ज्यादतियों के लिए माफ़ी मांग चुके हैं. आपातकाल के दौरान विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया था. लालू प्रसाद यादव आपातकाल की संपूर्ण अवधि में जेल में थे. एक पत्रकार के साथ लिखे गया उनका एक लेख द इंडियन एक्सप्रेस में 29 जून 2024 को प्रकाशित हुआ है. "द संघ साइलेंस ऑन इमरजेंसी" शीर्षक इस लेख में उन्होंने कहा कि यद्यपि विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया था मगर इंदिरा गाँधी ने उनके साथ गरिमापूर्ण व्यवहार किया. भाजपा कई सालों से 25 जून को काले दिवस के रूप में मनाती आ रही है.
आपातकाल के दौरान एक महत्वपूर्ण परिवर्तन यह आया कि स्वाधीनता संग्राम के एक शीर्ष सेनानी जयप्रकाश नारायण ने आरएसएस को अपने आन्दोलन का हिस्सा बना लिया. आरएसएस के नानाजी देशमुख, जिन्हें भाजपा सरकार ने हाल में भारत रत्न से नवाज़ा है, आन्दोलन के केन्द्रीय संगठक बन गए. इससे आरएसएस, जिसका सूरज संघ के पूर्व प्रचारक गोडसे के हाथों राष्ट्रपिता की हत्या के बाद से अस्त हो गया था, को सम्मान मिला. कुछ लोगों ने जब जेपी से कहा कि आरएसएस एक फ़ासिस्ट संगठन है तो शायद अपने भोलेपन के चलते या किसी अन्य कारण से उन्होंने जवाब दिया कि अगर आरएसएस फ़ासिस्ट है तो मैं भी फ़ासिस्ट हूँ.
जेपी का पुलिस व सेना से सरकार के आदेश न मानने का आव्हान बहुत खतरनाक था. इसके बाद आन्दोलन ने और जोर पकड़ लिया और संसद व विधानसभाओं के घेराव होने लगे. आरएसएस ने संपूर्ण क्रांति आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की जिसके कारण जनता में उसकी स्वीकार्यता बढ़ी. मगर जब आपातकाल लगने के बाद उसके सदस्यों की गिरफ्तारियों शुरू हुईं तो वे सरकार के सामने झुकने लगे. कई ने माफीनामों पर दस्तखत कर जेल से रिहाई हासिल की.
भाजपा अपने आप को आपातकाल के प्रतिरोध का नायक सिद्ध करना चाहती हैं. इस मामले में सच क्या है यह जानेमाने पत्रकार प्रभाष जोशी ने 'तहलका' पत्रिका में प्रकाशित अपने लेख में बताया था. उन्होंने लिखा था, "उस समय के आरएसएस मुखिया बालासाहेब देवरस ने इंदिरा गाँधी को पत्र लिखकर संजय गाँधी के कुख्यात 20 सूत्रीय कार्यक्रम के कार्यान्वयन में सहायता करने का आश्वासन दिया था. यह है आरएसएस का असली चरित्र. आप उसके व्यवहार में एक पैटर्न देख सकते हैं. आरएसएस और जनसंघ के कई कार्यकर्ता माफ़ीनामा देकर जेलों से बाहर आये. केवल उनके कुछ नेता जेलों में बने रहे – अटल बिहारी वाजपेयी (जो अधिकांश समय अस्पताल में रहे), एलके अडवाणी और अरुण जेटली. आरएसएस ने आपातकाल के खिलाफ कोई लड़ाई लड़ी हो, ऐसा बिलकुल नहीं है. ऐसे में भाजपा आपातकाल के प्रतिरोध के केंद्र में खुद को क्यों रखना चाहती है, यह समझना मुश्किल है." देवरस के इंदिरा गाँधी को लिखे पत्र एक पुस्तक "हिन्दू संगठन और सत्तावादी राजनीति" में प्रकाशित हैं. यह पुस्तक उन्होंने स्वयं लिखी थी और इसे जागृति प्रकाशन, नॉएडा ने प्रकाशित किया था. उस समय आईबी के उप प्रमुख वी. राजेश्वर ने भी पत्र लिखे जाने की पुष्टि की थी.
प्रेस सेंसरशिप, जबरिया नसबंदी और झुग्गियों का ढहाना जाना उस अवधि का दर्दनाक घटनाक्रम था.
पिछले दस सालों से हम क्या देख रहे हैं? सार्वजनिक सरोकार रखने वाले बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारियां हो रही हैं, पत्रकारों और शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में भाग लेने वालों को जेलों में डाला जा रहा है, मुख्यधारा का मीडिया सत्ताधारी सरकार के आगे नतमस्तक है और सरकार की नीतियों के विरोधियों को राष्ट्रद्रोही बताया जा रहा है. हमने यह भी देखा कि 146 सांसदों को लोकसभा से निलंबित कर दिया गया. पिछले दस सालों में जो कुछ हुआ है, उसमें सत्ताधारी दल और उसके पितामह आरएसएस के प्यादों के भूमिका रही है. पिछला एक दशक घोषित आपातकाल से भी बुरा था. यही कारण है कि 1975 के आपातकाल की कट्टर आलोचक नयनतारा सहगल ने पिछले एक दशक को "अघोषित आपातकाल" बताया है. वे लिखती हैं, "इसमें कोई संदेह नहीं कि यहाँ अघोषित आपातकाल लागू है. हमने अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बड़े पैमाने पर हमले देखे हैं. हमने देखा है निर्दोष और असहाय भारतीयों को मरते हुए केवल इसलिए क्योंकि वे आरएसएस के भारत में फिट नहीं बैठते....कुल मिलकर यह भयावह स्थिति है, यह एक दुस्वप्न है, जो आपातकाल से भी बुरा है....हालात इतने भयावह हैं कि उनकी तुलना किसी और दौर से नहीं की जा सकती."
यहाँ तक कि भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्णा अडवाणी ने भी पिछले एक दशक को अघोषित आपातकाल बताया था. "आज देश में अघोषित आपातकाल है, वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण अडवाणी ने सरकार के गठन के बाद ऐसा इशारा किया था. मगर फिर आरएसएस के दबाव में उन्होंने चुप्पी साध ली...". जब हम 1975 के आपातकाल की बात करते हैं तो हमें उस अघोषित आपातकाल पर भी आत्मचिंतन करना चाहिए जो भारत में पिछले दस सालों से लागू है.
दया याचिकाएं और माफीनामे पेश करना हिन्दू दक्षिणपंथियों की पुरानी आदत है. सावरकर ने अंडमान जेल में रहते हुए पांच दया याचिकाएं प्रस्तुत की थीं. अटलबिहारी वाजपेयी ने सन 1942 में अपनी गिरफ़्तारी के बाद, इसी तरह का पत्र लिख कर रिहाई हासिल की थी. उन्होंने लिखा था कि उनका भारत छोडो आन्दोलन से कोई लेनादेना नहीं है. इसी तरह, आपातकाल में बालासाहेब देवरस ने इंदिरा गाँधी को दो पत्र लिखकर समर्थन की पेशकश की थी. उन्होंने विनोबा भावे से कहा था कि वे इंदिरा गाँधी से कह कर आरएसएस पर प्रतिबन्ध समाप्त करवाएं. अरुण जेटली ने आपातकाल की तुलना हिटलर के शासन से की थी. यह सच है कि फ़ासिस्ट ताकतें सडकों पर लड़ने वाले अपने प्यादों की फ़ौज खड़ी करते हैं. पिछले एक दशक में, जर्मनी में ब्राउन शर्ट्स की तरह, भारत में भी लड़ाकों के कई समूह खड़े हुए हैं.
---
*अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया. लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं

टिप्पणियाँ

ट्रेंडिंग

એક કોંગ્રેસી ખાદીધારીએ આદિવાસીઓના હિત માટે કામ કરતી સંસ્થા ‘ગુજરાત ખેત વિકાસ પરિષદ’ની પીઠમાં છરો ભોંક્યો

- રમેશ સવાણી  ગુજરાત કોંગ્રેસના નેતાઓ/ ગાંધીવાદીઓ/ સર્વોદયવાદીઓ ભલે ખાદી પહેરે, પરંતુ તેમના રુંવાડે રુંવાડે ગોડસેનો વાસ છે ! બહુ મોટો આંચકો આપે તેવા સમાચાર મળ્યા, વધુ એક ગાંધીવાદી સંસ્થા/ વંચિતવર્ગ માટે કામ કરતી સંસ્થાની હત્યા થઈ!  ‘ખેત ભવન’માં હું ઝીણાભાઈ દરજીને મળ્યો હતો. એમણે વંચિતવર્ગની સેવા માટે જીવન સમર્પિત કરી દીધું હતું. ઈન્દુકુમાર જાની સાથે  અહીં બેસીને, અનેક વખત લાંબી ચર્ચાઓ કરી હતી અને તેમણે આ સંસ્થાની લાઈબ્રેરીમાંથી અનેક પુસ્તકો મને વાંચવા આપ્યા હતા, જેનાથી હું વૈચારિક રીતે ઘડાયો છું. આ સંસ્થા વંચિત વર્ગના બાળકો માટે ગુજરાતમાં 18 સંસ્થાઓ ચલાવે છે; ત્યાં ભણતા બાળકોનું મોટું અહિત થયું છે. એક મોટી યુનિવર્સિટી જે કામ ન કરી શકે તે આ સંસ્થાએ કર્યું છે, અનેકને ઘડ્યા છે, કેળવ્યા છે, અનેક વિદ્યાર્થીઓને પ્રગતિ તરફ દોરી ગઈ છે. આ સંસ્થામાં એવા કેટલાંય સામાજિક/ આર્થિક લડતના દસ્તાવેજો/ પુસ્તકો છે, જેનો નાશ થઈ જશે. અહીંથી જ વંચિતલક્ષી વિકાસ પ્રવૃતિ/ વૈજ્ઞાનિક અભિગમ/ શોષણવિહીન સમાજ રચના માટે પ્રતિબદ્ધ પાક્ષિક ‘નયામાર્ગ’  પ્રસિદ્ધ થતું હતું, જેથી ગુજરાતને વૈચારિક/ પ્રગતિશિલ સાહિ

रचनाकार चाहे जैसा हो, अस्वस्थ होने पर उसकी चेतना व्यापक पीड़ा का दर्पण बन जाती है

- अजय तिवारी  टी एस इलियट कहते थे कि वे बुखार में कविता लिखते हैं। उनकी अनेक प्रसिद्ध कविताएँ बुखार की उतपत्ति हैं। कुछ नाराज़ किस्म के बुद्धिजीवी इसका अर्थ करते हैं कि बीमारी में रची गयी ये कविताएँ बीमार मन का परिचय देती हैं।  मेँ कोई इलियट का प्रशंसक नहीं हूँ। सभी वामपंथी विचार वालों की तरह इलियट की यथेष्ट आलोचना करता हूँ। लेकिन उनकी यह बात सोचने वाली है कि बुखार में उनकी रचनात्मक वृत्तियॉं एक विशेष रूप में सक्रिय होती हैं जो सृजन के लिए अनुकूल है। 

आदिवासी की पुलिस हिरासत में हत्या के लिए ज़िम्मेवार पुलिस कर्मियों को गिरफ्तार करो

- शिवराम कनासे, अंतराम अवासे, माधुरी*  --- पुलिस हिरासत में आदिवासी की मौत: धर्मेंद्र दांगोड़े का परिवार खंडवा एसपी कार्यालय पहुंचा, दोषी पुलिस कर्मियों के गिरफ्तारी की उठाई मांग – आदिवासी संगठनों ने कार्यवाही न होने पर पूरे निमाड में आदिवासी आंदोलन की दी चेतावनी... --- पुलिस हिरासत में आदिवासी की मौत का खंडवा-खरगोन में तीन साल में यह तीसरा मामला – इससे पहले भी पुलिस कर्मियों को दोषी पाए जाने के बावजूद मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं हुई है – मध्य प्रदेश बन चुका है आदिवासियों पर अत्याचार का गढ़... *** धर्मेंद्र दांगोड़े की खंडवा के थाना पंधाना में हुई हत्या के संबंध में, 29.08.2024 को धर्मेंद्र के परिवार सहित आदिवासी संगठन खंडवा एसपी कार्यालय पहुंचे और धर्मेंद्र दांगोड़े की हत्या के लिए जिम्मेदार पुलिस कर्मियों की गिरफ्तारी की मांग उठाई । परिवार के साथ खंडवा, खरगोन और बुरहानपुर के जागृत आदिवासी दलित संगठन, जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस), आदिवासी एकता परिषद, भारत आदिवासी पार्टी एवं टंटीया मामा भील समाज सेवा मिशन के सदस्य ने ज्ञापन सौंप कर दोषी पुलिस कर्मियों पर हत्या का मामला दर्ज

कांडला पोर्ट पर बसने वाले मछुआरों के घरों को तोड़े जाने व उनके पुनर्वसन के संबंध में पत्र

- मुजाहिद नफीस*  सेवा में, माननीय सरवानन्द सोनेवाल जी मंत्री बन्दरगाह, जहाज़रानी भारत सरकार, नई दिल्ली... विषय- गुजरात कच्छ के कांडला पोर्ट पर बसने वाले मछुआरों के घरों को तोड़े जाने व उनके पुनर्वसन (Rehabilitation) के संबंध में, महोदय,

સિદ્ધપુર નગરપાલિકાની ગુનાહિત બેદરકારીથી મુસ્લિમ યુવાનની મૃત્યુની સઘન તપાસ થાય

- મુજાહિદ નફીસ*  પ્રતિ શ્રી, પોલિસ મહાનિદેશક શ્રી ગુજરાત રાજ્ય ગાંધીનગર, ગુજરાત વિષય- સિદ્ધપુર નગરપાલિકાની ગુનાહિત બેદરકારીથી મુસ્લિમ યુવાનની મૃત્યુની સઘન તપાસ થાય તે માટે SIT ની રચના બાબતે.

જીવનધ્યેય અનામત કે સમાનતા? સર્વોચ્ચ અદાલતનો અનામતનામાં પેટા-વર્ગીકરણનો ચુકાદો ઐતિહાસિક પરિપ્રેક્ષમાં

- માર્ટિન મૅકવાન*  તાજેતરમાં મા. ભારતીય સર્વોચ્ચ અદાલતે અનુસૂચિત જાતિ અને જનજાતિમાં અનામતના સંદર્ભમાં પેટા-વર્ગીકરણ ભારતીય બંધારણને આધારે માન્ય છે તેવો બહુમતિ ચુકાદો આપ્યો. આ ચુકાદાના આધારે ભારત બંધ સહીત જલદ પ્રતિક્રિયા જોવા મળી. ભાજપ, કોંગ્રેસ અને બીજા અન્ય પક્ષોએ તેઓ આ ચુકાદા સાથે સહમત નથી તેવી પ્રાથમિક પ્રતિક્રિયા આપી છે. સામાજિક પ્રચાર-પ્રસાર માધ્યમોમાં આ ચુકાદા અંગેને ચર્ચા જોતાં જણાય છે કે આ ચુકાદાનો  વિરોધ કે સમર્થન શા માટે કરવાં તેની દિશા અંગે એકસૂત્રતા નથી.

અનુસુચિત જાતિની ફરિયાદો ન નોંધનાર જવાબદાર અધિકારીઓ સામે કાર્યવાહી કરવા બાબત

- વાલજીભાઈ પટેલ*  પ્રતિ, મા. શ્રી ભૂપેન્દ્રભાઈ પટેલ, મુખ્યમંત્રીશ્રી, ગુજરાત રાજ્ય, સચિવાલય, ગાંધીનગર  પ્રતિ, મા. શ્રી હર્ષ સંઘવી, ગૃહરાજ્યમંત્રીશ્રી, ગુજરાત રાજ્ય, સચિવાલય, ગાંધીનગર.  વિષય- ટંકારા પોલીસ સ્ટેશન જીલ્લા મોરબીમાં અનુસુચિત જાતિની ફરિયાદો ન નોંધનાર જવાબદાર અધિકારીઓ સામે કાર્યવાહી કરવા બાબત.  સાદર નમસ્કાર.