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केंद्रीय बजट में कॉर्पोरेट हित के लिए, दलित/आदिवासी बजट का इस्तेमाल हुआ

- उमेश बाबू* 

वर्ष 2024-25 का केंद्रीय बजट 48,20,512 करोड़ रुपये है, जिसमें से 1,65,493 करोड़ रुपये (3.43%) अनुसूचित जाति के लिए और 1,32,214 करोड़ रुपये (2.74%) अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटित किए गए हैं, जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की योजनाओं के अनुसार उन्हें क्रमशः 7,95,384 और 3,95,281 करोड़ रुपये देने आवंटित करना चाहिए था । केंद्रीय बजट ने जनसंख्या के अनुसार बजट आवंटित करने में बड़ी असफलता दिखाई दी है और इससे स्पष्ट होता है कि केंद्र सरकार को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की समाजिक सुरक्षा एवं एवं विकास की चिंता नहीं है|
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए योजनाओं के नाम पर सरकार कॉर्पोरेट जगत  का हित कर रही है । इस केंद्रीय बजट में, केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण के लिए बनाई जाने वाली योजनाओं की जगह  अन्य क्षेत्रों में पैसे आवंटित कर दिए हैं (जैसे दूरसंचार, सेमीकंडक्टर, लार्ज स्केल इंडस्ट्रीज, परिवहन उद्योग, उर्वरक आयात, रासायनिक उत्पादन आदि) और अनुसूचित जाति उपयोजना एवं अनुसूचित जन जाती योजना की मूल आत्मा के साथ खिलवाड़ किया है । हम कुछ उदाहरणों निचे दिए गए कुछ उदहारण के माध्यम से यह दर्शाना चाहते हैं मौजूदा केंद्र सरकार ने कैसे अनुसूचित जाति उपयोजना एवं अनुसूचित जन जाती योजना बजट को अनुचित रूप से अन्य गैर जरूरी कामों में आवंटित किया है और भारतीय संविधान का उल्लंघन किया है।

जातिगत भेदभाव की सच्चाई: सफाई कर्मचारियों और उनके परिवारों के पुनर्वास के लिए उपेक्षित बजट: 

  • 2023-2024 और 2024-2025 के आखिरी वित्तीय वर्षों में सफाई कर्मियों के स्वरोजगार और पुनर्वास के लिए कोई बजट आबंटित नहीं किया गया।
  • 2024-2025 के लिए राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (NSKFDC), जो भारत भर में सफाई कर्मचारियों को ऋण प्रदान और वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है, के लिए केवल 1 लाख रुपये की अत्यंत कम राशि आवंटित की गई।
  • 2022-2023 में SRMS से के लिए बजट 70 करोड़ रुपये था जिसमें से केवल 11.1 करोड़ रुपये खर्च हुए और लगभग 58.9 करोड़ लेप्स हो गया । 2020 के बाद से ही बजट की अधिकतम राशि, 50% से अधिक, लेप्स हो रहा है।
  • राष्ट्रीय मेकेनाइज्ड सफाई कार्यक्रम (NAMASTE) जैसी योजनाओं को 236.99 करोड़ रुपये का विशाल बजट दिया गया है, जो केवल कॉर्पोरेट्स को पैसे देने के लिए एक प्रतीकात्मक व्यवस्था है जिसका मौजूदा सफाई कर्मचारियों के पुनर्वास से कोई लेना देना नहीं है।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति बजट को कॉर्पोरेट्स की तरफ धकेलना एवं दलित और आदिवासी को विकास से बाहर:

  • एसी/एसटी कल्याण निधि से 2,140 करोड़ दूरसंचार के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण और वृद्धि के लिए सेवा प्रदाताओं को मुआवजा के देने लिए आवंटित किया गया जिसका दलित एवं आदिवासी के सीधे से कोई लेना देना नहीं है ।
  • एसी/एसटी निधियों से 1,035 करोड़ सेमीकंडक्टर और प्रदर्शन निर्माण के लिए लगाये गए।
  • एससी निधि से 508 करोड़ रुपये और एसटी निधि से 410 करोड़ रुपये "बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन के लिए उत्पादन संबंधित प्रोत्साहन" के तहत आवंटित कर दिए गए।
  • उरिया और अन्य उर्वरक फास्फोरस और पोटाशियम के आयात और स्वदेशी निर्माण के लिए सब्सिडी" जैसी योजनाओं के माध्यम से एक महा 22,052.15 करोड़ रुपये आयातकर्ताओं और निर्माताओं को दिए गए, जो एसी/एसटी विकास से सम्बंधित नहीं है। इसमें से 14,356 करोड़ रुपये एसी निधि से भटक गए और 7,696.15 करोड़ रुपये एसटी निधि से।
विस्वास, नमस्ते, सीड्स, पीएम डक्ष योजना, श्रेयस, स्माइल जैसी योजनाएं केवल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की जुबानी कहानियों तक सिमटी हुई हैं। यह देखकर हैरानी हो रही है कि अनुसूचित जातियों के आर्थिक विकास के लिए नगण्य बजट आवंटन किया गया है, इन योजनाओं के क्रियान्वयन का कोई माकूल तरीका नहीं है। वित्त मंत्री से दलित और आदिवासी महिलाओं के संरक्षण और जीविका के लिए एक नई योजना की उम्मीद थी, लेकिन नये बजट में उनके लाभ के लिए कोई योजना प्रस्तुत करने की बजाय यह हैरानी की बात है।
दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (दशम) और पीपल्स मीडिया एडवोकेसी और रिसर्च सेंटर (पीएमएआरसी), सीवरेज एंड एलाइड वर्कर्स फोरम (एसएसकेएम), इंडियन सैनिटेशन स्टडीज कलेक्टिव (आईएसएससी) की ओर से हम भारत सरकार से निवेदन करते हैं की दलित एवं आदिवासी बजट को अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) और जनजाति उपयोजना (टीएसपी) के अनुसार बजट आवंटित करें और दलित आदिवासियों के अधिकार को सुनिचित करे।
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*दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (दशम)

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