सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सागर में दलित युवाओं की हत्या, उनके परिवारों के साथ प्रताड़ना: दखल के बाद भी कितना न्याय?

- एड. मोहन दीक्षित व अन्य* 

नागरिक दल द्वारा एक जांच रिपोर्ट...
अगस्त 2023 में सागर जिले के बरौदिया नौनागिर गाँव में 18 वर्षीय दलित युवक नितिन अहिरवार की दबंगों द्वारा बर्बर हत्या और उसकी माँ और बहन पर हमले का मामला सामने आया था । मात्र 9 महीने बाद, नितिन के चाचा, और प्रकरण में एक मुख्य गवाह, राजेन्द्र अहिरवार, पर हिंसक हमला कर उनकी हत्या की गई । 
राजेंद्र अहिरवार के शव को घर ले जाते समय, लगातार न्याय की मांग कर रही नितिन की बहन दिलेर और बहादुर 20 वर्षीय अंजना अहिरवार की भी संदेहास्पद स्थिति में मृत्यु हो गई । इस घटनाक्रम से पूरा मध्य प्रदेश हिल गया था । ऐसी परिस्थिति में संवैधानिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध मध्य प्रदेश के नागरिकों द्वारा मामले की पड़ताल आवश्यक समझ कर परिवार, प्रशासन और अन्य लोगों से मिल कर, दस्तावेज़ों को खंगाल कर एक रिपोर्ट तैयार की गई है । 
हमने पाया कि मीडिया की सक्रियता के कारण नितिन हत्या कांड में अधिकांश आरोपी गिरफ्तार तो हुए थे पर कार्यवाही में कई कमियाँ रह गयी हैं और स्थानीय राजनेताओं और प्रशासन के पूर्वाग्रह और पक्षपात के कारण पीड़ित परिवार पर दबाव बरकरार रहा और राजेंद्र और अंजना की भी मौत हुई । आरोपियों के तरफ से पीड़ितों को 'राजीनामा' करने के दबाव, एक स्थानीय राजनेता क नाम का नहीं जोड़ा जाना और कार्यवाही में शिथिलता के लिखित शिकायतों पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी । पहले भी इन्हीं में से कुछ दबंगों के खिलाफ यौन हिंसा के मामले मे प्रकरण कमजोर किया गया था । 
सागर मध्य प्रदेश की राजनैतिक सत्ता का एक महत्वपूर्ण केंद्र है और इस मामले में विपक्षी नेता और फिर स्वयं मुख्य मंत्री डॉ. मोहन यादव भी पीड़ितों से मिलने पहुँचें । परंतु डेढ़ माह बाद भी राजेंद्र की हत्या के अधिकांश आरोपी गिरफ्तार नहीं हुए हैं । अंजना की मौत को शव वाहन से "गिरना या कूदना" बताया जा रहा है जो अविश्वसनीय है और विवरण पूछे जाने पर डेढ़ माह बाद भी पुलिस "जांच चल रही है" बोल कर चुप्पी साधी हुई है ।
अंजना की मौत की परिस्थितियाँ साजिश की ओर इशारा करती है । अंजना पढ़ी लिखी थी, और इन सभी अत्याचार के मामलों में न्याय मांगने में उनकी ही सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी । परिवार की तरफ से प्रशासन और राजनेताओं के साथ वही संवाद करती थीं । 15 वर्ष की उम्र में ही अपने पर हुई हिंसा के मामले में रसूखदारों पर एफ़आईआर दर्ज करवा पाईं थी और इस मामलें में समझौता करने से इनकार करती रहीं । 
अंजना अपने भाई नितिन की हत्या के मामले में फरियादी और एक मुख्य गवाह थी । चाचा की हत्या के मामले में भी मुख्य गवाह थीं, क्योंकि उन्हीं को चाचा ने फोन पर अपने पर हो रहे हमले की सूचना दी थी। अंजना पर लगातार राजीनामा और गवाही बदलने का दबाव बनाया जा रहा था और इस संबंध में उन्होने कई लिखित शिकायतें भी की थी । अंजना ने हाई कोर्ट में नितिन की हत्या के आरोपियों की जमानत अर्जी पर भी आपत्ती लगाई जिससे उनकी जमानत खारिज हो गयी थी । अंजना सुप्रीम कोर्ट में भी आपत्ति लगाने की तैयारी कर रही थी ।
इन सभी मामलों में विस्तृत और निष्पक्ष जांच की सख्त जरूरत है, जिसके लिए स्थानीय पुलिस सक्षम और विश्वसनीय नहीं दिखाई दे रही है। इसलिए हमारा मानना है कि सीबीआई द्वारा ही जांच किया जाना चाहिए, जैसे कि पीड़ित परिवार द्वारा और क्षेत्र में लगातार मांग उठ रही है। 
इस क्षेत्र के दिग्गज नेता, विधायक और पूर्व मंत्री, श्री भूपेंद्र सिंह द्वारा इन मामलों मे दिए गए बयान से पीड़ितों के खिलाफ पूर्वाग्रह और मामलों की गंभीरता को कम दर्शाने की कोशिश दिखती है। नितिन की हत्या के बाद उन्होने इसे 'आपसी विवाद' बताया । अंजना और राजेंद्र के मौत के बाद राजेंद्र को अपराधी और अंजना को अपराधियों द्वारा गुमराह बताया । जबकि मामला है दबंगों द्वारा दलितों का अत्याचार, जिसमें एक नाबालिग लड़की पर हिंसा, तीन नौजवानों की मौत, एक महिला को पीट कर निर्वस्त्र किया जाना और दलितों के घर तोड़े जाने का घटनाक्रम रहा है । उल्लेखनीय है कि आरोपी "लंबरदारों" में से तीन प्रमुख आरोपी, श्री कोमल ठाकुर और उनके दो पुत्र, भाजपा के कार्यकर्ता और पदाधिकारी रहे हैं । 
पुलिस द्वारा नितिन और राजेंद्र सहित नितिन के भाई विष्णु पर आपराधिक प्रकरणों का हवाला देते हुए और इनको दबंग "लंबरदारों" के विरोधी गुट द्वारा इस्तेमाल किया जाना बाताया है। जबकि पुलिस की साफ दिखती पूर्वाग्रह से इन विचाराधीन प्रकरणों का भी निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है और यदि मामले को उठाने में इन दलित मजदूरों को विरोधी गुट के व्यक्तियों का सहयोग मिला भी हो, तो भी इन हिंसा और प्रताड़ना के आरोपों को झुठलाया नहीं जा सकता है । 
जाहिर है कि एक दलित मजदूर परिवार द्वारा गाँव के दबंग "लंबरदारों" के खिलाफ एफ़आईआर और शिकायतें दर्ज करवाना, उनके खिलाफ बयान देना और राजीनामा के लिए भी तैयार नहीं होने से दबंगों के वर्चस्व को चुनौती के रूप में देखा गया है और इसी से तनाव और हिंसा बढ़ती गई है । नितिन- अंजना और राजेंद्र के पीड़ित परिवारों ने हमसे कई बार कहा कि वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं ।
इस मामले में सत्ता और विपक्ष के कई दिग्गज राजनेताओं का दखल रहा है और स्वयं मुख्य मंत्री का दौरा भी रहा है । इसके बाद भी पुख्ता कार्यवाही नहीं होने से पीड़ित परिवारों पर खतरा बढ़ गया है। स्पष्ट है कि अब भी यदि कार्यवाही में किसी भी प्रकार की कमी रही और किसी प्रकार की हिंसा या प्रताड़ना हुई, तो उसके लिए राज्य शासन ही पूर्ण रूप से ज़िम्मेवार होगा । 
---
*नागरिक जांच दल: एड. अदित्य रावत,  माधुरी (PUCL-पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीस); अंजली ( अखिल भारतीय नारीवादी मंच ALIFA); नीलु दाहिया (एका संस्था); नितिन (जागृत आदिवासी दलित संगठन);  रोहित, सदफ़ खान 

टिप्पणियाँ

ट्रेंडिंग

એક કોંગ્રેસી ખાદીધારીએ આદિવાસીઓના હિત માટે કામ કરતી સંસ્થા ‘ગુજરાત ખેત વિકાસ પરિષદ’ની પીઠમાં છરો ભોંક્યો

- રમેશ સવાણી  ગુજરાત કોંગ્રેસના નેતાઓ/ ગાંધીવાદીઓ/ સર્વોદયવાદીઓ ભલે ખાદી પહેરે, પરંતુ તેમના રુંવાડે રુંવાડે ગોડસેનો વાસ છે ! બહુ મોટો આંચકો આપે તેવા સમાચાર મળ્યા, વધુ એક ગાંધીવાદી સંસ્થા/ વંચિતવર્ગ માટે કામ કરતી સંસ્થાની હત્યા થઈ!  ‘ખેત ભવન’માં હું ઝીણાભાઈ દરજીને મળ્યો હતો. એમણે વંચિતવર્ગની સેવા માટે જીવન સમર્પિત કરી દીધું હતું. ઈન્દુકુમાર જાની સાથે  અહીં બેસીને, અનેક વખત લાંબી ચર્ચાઓ કરી હતી અને તેમણે આ સંસ્થાની લાઈબ્રેરીમાંથી અનેક પુસ્તકો મને વાંચવા આપ્યા હતા, જેનાથી હું વૈચારિક રીતે ઘડાયો છું. આ સંસ્થા વંચિત વર્ગના બાળકો માટે ગુજરાતમાં 18 સંસ્થાઓ ચલાવે છે; ત્યાં ભણતા બાળકોનું મોટું અહિત થયું છે. એક મોટી યુનિવર્સિટી જે કામ ન કરી શકે તે આ સંસ્થાએ કર્યું છે, અનેકને ઘડ્યા છે, કેળવ્યા છે, અનેક વિદ્યાર્થીઓને પ્રગતિ તરફ દોરી ગઈ છે. આ સંસ્થામાં એવા કેટલાંય સામાજિક/ આર્થિક લડતના દસ્તાવેજો/ પુસ્તકો છે, જેનો નાશ થઈ જશે. અહીંથી જ વંચિતલક્ષી વિકાસ પ્રવૃતિ/ વૈજ્ઞાનિક અભિગમ/ શોષણવિહીન સમાજ રચના માટે પ્રતિબદ્ધ પાક્ષિક ‘નયામાર્ગ’  પ્રસિદ્ધ થતું હતું, જેથી ગુજરાતને વૈચારિક/ પ્રગતિશિલ સાહિ

रचनाकार चाहे जैसा हो, अस्वस्थ होने पर उसकी चेतना व्यापक पीड़ा का दर्पण बन जाती है

- अजय तिवारी  टी एस इलियट कहते थे कि वे बुखार में कविता लिखते हैं। उनकी अनेक प्रसिद्ध कविताएँ बुखार की उतपत्ति हैं। कुछ नाराज़ किस्म के बुद्धिजीवी इसका अर्थ करते हैं कि बीमारी में रची गयी ये कविताएँ बीमार मन का परिचय देती हैं।  मेँ कोई इलियट का प्रशंसक नहीं हूँ। सभी वामपंथी विचार वालों की तरह इलियट की यथेष्ट आलोचना करता हूँ। लेकिन उनकी यह बात सोचने वाली है कि बुखार में उनकी रचनात्मक वृत्तियॉं एक विशेष रूप में सक्रिय होती हैं जो सृजन के लिए अनुकूल है। 

आदिवासी की पुलिस हिरासत में हत्या के लिए ज़िम्मेवार पुलिस कर्मियों को गिरफ्तार करो

- शिवराम कनासे, अंतराम अवासे, माधुरी*  --- पुलिस हिरासत में आदिवासी की मौत: धर्मेंद्र दांगोड़े का परिवार खंडवा एसपी कार्यालय पहुंचा, दोषी पुलिस कर्मियों के गिरफ्तारी की उठाई मांग – आदिवासी संगठनों ने कार्यवाही न होने पर पूरे निमाड में आदिवासी आंदोलन की दी चेतावनी... --- पुलिस हिरासत में आदिवासी की मौत का खंडवा-खरगोन में तीन साल में यह तीसरा मामला – इससे पहले भी पुलिस कर्मियों को दोषी पाए जाने के बावजूद मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं हुई है – मध्य प्रदेश बन चुका है आदिवासियों पर अत्याचार का गढ़... *** धर्मेंद्र दांगोड़े की खंडवा के थाना पंधाना में हुई हत्या के संबंध में, 29.08.2024 को धर्मेंद्र के परिवार सहित आदिवासी संगठन खंडवा एसपी कार्यालय पहुंचे और धर्मेंद्र दांगोड़े की हत्या के लिए जिम्मेदार पुलिस कर्मियों की गिरफ्तारी की मांग उठाई । परिवार के साथ खंडवा, खरगोन और बुरहानपुर के जागृत आदिवासी दलित संगठन, जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस), आदिवासी एकता परिषद, भारत आदिवासी पार्टी एवं टंटीया मामा भील समाज सेवा मिशन के सदस्य ने ज्ञापन सौंप कर दोषी पुलिस कर्मियों पर हत्या का मामला दर्ज

कांडला पोर्ट पर बसने वाले मछुआरों के घरों को तोड़े जाने व उनके पुनर्वसन के संबंध में पत्र

- मुजाहिद नफीस*  सेवा में, माननीय सरवानन्द सोनेवाल जी मंत्री बन्दरगाह, जहाज़रानी भारत सरकार, नई दिल्ली... विषय- गुजरात कच्छ के कांडला पोर्ट पर बसने वाले मछुआरों के घरों को तोड़े जाने व उनके पुनर्वसन (Rehabilitation) के संबंध में, महोदय,

સિદ્ધપુર નગરપાલિકાની ગુનાહિત બેદરકારીથી મુસ્લિમ યુવાનની મૃત્યુની સઘન તપાસ થાય

- મુજાહિદ નફીસ*  પ્રતિ શ્રી, પોલિસ મહાનિદેશક શ્રી ગુજરાત રાજ્ય ગાંધીનગર, ગુજરાત વિષય- સિદ્ધપુર નગરપાલિકાની ગુનાહિત બેદરકારીથી મુસ્લિમ યુવાનની મૃત્યુની સઘન તપાસ થાય તે માટે SIT ની રચના બાબતે.

જીવનધ્યેય અનામત કે સમાનતા? સર્વોચ્ચ અદાલતનો અનામતનામાં પેટા-વર્ગીકરણનો ચુકાદો ઐતિહાસિક પરિપ્રેક્ષમાં

- માર્ટિન મૅકવાન*  તાજેતરમાં મા. ભારતીય સર્વોચ્ચ અદાલતે અનુસૂચિત જાતિ અને જનજાતિમાં અનામતના સંદર્ભમાં પેટા-વર્ગીકરણ ભારતીય બંધારણને આધારે માન્ય છે તેવો બહુમતિ ચુકાદો આપ્યો. આ ચુકાદાના આધારે ભારત બંધ સહીત જલદ પ્રતિક્રિયા જોવા મળી. ભાજપ, કોંગ્રેસ અને બીજા અન્ય પક્ષોએ તેઓ આ ચુકાદા સાથે સહમત નથી તેવી પ્રાથમિક પ્રતિક્રિયા આપી છે. સામાજિક પ્રચાર-પ્રસાર માધ્યમોમાં આ ચુકાદા અંગેને ચર્ચા જોતાં જણાય છે કે આ ચુકાદાનો  વિરોધ કે સમર્થન શા માટે કરવાં તેની દિશા અંગે એકસૂત્રતા નથી.

અનુસુચિત જાતિની ફરિયાદો ન નોંધનાર જવાબદાર અધિકારીઓ સામે કાર્યવાહી કરવા બાબત

- વાલજીભાઈ પટેલ*  પ્રતિ, મા. શ્રી ભૂપેન્દ્રભાઈ પટેલ, મુખ્યમંત્રીશ્રી, ગુજરાત રાજ્ય, સચિવાલય, ગાંધીનગર  પ્રતિ, મા. શ્રી હર્ષ સંઘવી, ગૃહરાજ્યમંત્રીશ્રી, ગુજરાત રાજ્ય, સચિવાલય, ગાંધીનગર.  વિષય- ટંકારા પોલીસ સ્ટેશન જીલ્લા મોરબીમાં અનુસુચિત જાતિની ફરિયાદો ન નોંધનાર જવાબદાર અધિકારીઓ સામે કાર્યવાહી કરવા બાબત.  સાદર નમસ્કાર.