सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

साहित्य बोध में परिवर्तन: सत्तर के दशक में विचारधारा का महत्व बहुत अधिक था

- अजय तिवारी
 
सत्तर के बाद वाले दशक में जब हम लोग साहित्य में प्रवेश कर रहे थे तब दाढ़ी रखने, बेतरतीबी से कपड़े पहनने और फक्कड़पन का जीवन जीने वाले लोग बेहतर लेखक हुआ करते थे या बेहतर समझे जाते थे। नयी सदी में चिकने-चुपड़े, बने-ठने और खर्चीला जीवन बिताने वाले सम्मान के हक़दार हो चले हैं। यह फ़र्क़ जनवादी उभार और भूमण्डलीय उदारीकरण के बीच का सांस्कृतिक अंतर उजागर करता है। 
सत्तर के दशक में बड़े-बड़े रचनाकरों की पलटन थी। उनमेँ से अच्छे-बुरे लेखक का भेद करना हम लोग अध्ययन और अनुभव से सीख रहे थे। उत्तर-भूमंडलीय दौर में वैसे बड़े लेखक हैं नहीँ और युवाओं में दूसरों की रचना पढ़ने का धैर्य कम हो रहा है। भले महत्वपूर्ण वरिष्ठ लेखक ही क्योँ न होँ, युवाओं की अभिरुचि अपनी पकी-अधपकी रचना पढ़वाने में ज़्यादा है। 
सत्तर के दशक मेँ हम एक-दूसरे के साथ संवाद और बहस करते हुए अपना विकास करते थे, उत्तर-भूमण्डलीय दौर मेँ नये से नये रचनाकार को केवल  अपनी प्रशंसा स्वीकार है, कमी निकाली नहीँ कि गये काम से! 
सत्तर के दशक मेँ लघु पत्रिकाओँ मेँ छपना मान्यता और प्रसिद्धि के लिए मूल्यवान होता था इसलिए 'धर्मयुग' मेँ छपने वाले लेखक मुड़कर लघु पत्रिकाओँ की ओर आये। उत्तर-भूमंडलीय दौर में वैसी आन्दोलनपरक लघु पत्रिकाएँ रही नहीँ, रचनाकरों को उनकी ज़रूरत भी नहीँ है, सोशल मीडिया हर मंच का विकल्प और स्थानापन्न है। 
सत्तर के दशक मेँ विचारधारा का महत्व बहुत अधिक था। उत्तर-भूमण्डलीय दौर मेँ अस्मिता ने उसका स्थान ले लिया है। विचारधारा का मोल था तो रचनाओँ का मूल्यांकन भी होता था, अस्मिता का समय है तो मूल्यांकन के बदले अनुमोदन और भर्त्सना रह गयी है। मूल्यांकन के लिए रचना की विषयवस्तु और कलात्मक प्रयोग, रचना का सामाजिक सन्दर्भ और मनोवैज्ञानिक प्रभाव, परम्परा से सम्बंध और नवीनता मेँ योगदान आदि अनेक पक्षों पर ध्यान देना आवश्यक था। 
यह सब एक विवेक की माँग करता था। अस्मिता के लिए इसमेँ से कुछ भी आवश्यक नहीं है। आप मेरे जाति या धर्म के हैँ तो मुझे आपकी हर बात का समर्थन करना है। आप भिन्न जाति या धर्म के हैँ तो मुझे आपकी हर बात का विरोध करना है। विचारधारा के साथ विवेक की भूमिका यह थी कि मुझे अपनी ही नहीँ , दूसरे की मनोदशा को भी आत्मसात् करना पड़ता था। जिस लेखक मेँ यह परकायाप्रवेश जितना उच्च स्तर का होता था उसकी रचना उतनी चिरस्थायी होती थी। अस्मिता के लिए यह परकायाप्रवेश व्यर्थ है। मेँ अपनी पहचान तो खुद बनाऊँगा ही, दूसरे की पहचान भी मेँ ही निश्चित करूँगा! इसलिए पहले तटस्थता एक मूल्य था, अब चरम वैयक्तिकता वरेण्य है। 
मेँ यह नहीँ मानता कि पहले सब अच्छा था, अब पतित है। इसे ऐतिहासिक दृष्टि से परिवर्तन कहना उचित है। जैसे वाल्मीकि की ऊँचाई पर कोई दूसरा नहीँ पहुँचा वैसे भवभूति की उदात्तता तक और कालिदास के सौंदर्य बोध तक कोई दूसरा नहीँ पहुँचा। अस्मितवादियों के गाली देने पर भी तुलसीदास के काव्यात्मक धरातल तक कोई दूसरा नहीँ पहुँचा, निराला के करुणा-सौंदर्य-औदात्य तक दूसरा नहीँ पहुँच पाया। फिर भी वाल्मीकि से निराला तक साहित्य का विकास होता आया है। 
यह क्रम आगे भी चलेगा। लेकिन तभी जब हम उत्तेजना से नहीँ, विवेक से परिचालित होकर प्रयत्न करेंगे। परन्तु यही विवेक तो अस्मिता, बाजार, युद्ध, मुनाफ़े के बीच सबसे ज़्यादा शिकार बन रहा है!
मित्रों से अपेक्षा है कि इस अनुभव में नए पहलू जोड़ें।
---
*स्रोत: फेसबुक 

टिप्पणियाँ

ट्रेंडिंग

એક કોંગ્રેસી ખાદીધારીએ આદિવાસીઓના હિત માટે કામ કરતી સંસ્થા ‘ગુજરાત ખેત વિકાસ પરિષદ’ની પીઠમાં છરો ભોંક્યો

- રમેશ સવાણી  ગુજરાત કોંગ્રેસના નેતાઓ/ ગાંધીવાદીઓ/ સર્વોદયવાદીઓ ભલે ખાદી પહેરે, પરંતુ તેમના રુંવાડે રુંવાડે ગોડસેનો વાસ છે ! બહુ મોટો આંચકો આપે તેવા સમાચાર મળ્યા, વધુ એક ગાંધીવાદી સંસ્થા/ વંચિતવર્ગ માટે કામ કરતી સંસ્થાની હત્યા થઈ!  ‘ખેત ભવન’માં હું ઝીણાભાઈ દરજીને મળ્યો હતો. એમણે વંચિતવર્ગની સેવા માટે જીવન સમર્પિત કરી દીધું હતું. ઈન્દુકુમાર જાની સાથે  અહીં બેસીને, અનેક વખત લાંબી ચર્ચાઓ કરી હતી અને તેમણે આ સંસ્થાની લાઈબ્રેરીમાંથી અનેક પુસ્તકો મને વાંચવા આપ્યા હતા, જેનાથી હું વૈચારિક રીતે ઘડાયો છું. આ સંસ્થા વંચિત વર્ગના બાળકો માટે ગુજરાતમાં 18 સંસ્થાઓ ચલાવે છે; ત્યાં ભણતા બાળકોનું મોટું અહિત થયું છે. એક મોટી યુનિવર્સિટી જે કામ ન કરી શકે તે આ સંસ્થાએ કર્યું છે, અનેકને ઘડ્યા છે, કેળવ્યા છે, અનેક વિદ્યાર્થીઓને પ્રગતિ તરફ દોરી ગઈ છે. આ સંસ્થામાં એવા કેટલાંય સામાજિક/ આર્થિક લડતના દસ્તાવેજો/ પુસ્તકો છે, જેનો નાશ થઈ જશે. અહીંથી જ વંચિતલક્ષી વિકાસ પ્રવૃતિ/ વૈજ્ઞાનિક અભિગમ/ શોષણવિહીન સમાજ રચના માટે પ્રતિબદ્ધ પાક્ષિક ‘નયામાર્ગ’  પ્રસિદ્ધ થતું હતું, જેથી ગુજરાતને વૈચારિક/ પ્રગતિશિલ સાહિ

रचनाकार चाहे जैसा हो, अस्वस्थ होने पर उसकी चेतना व्यापक पीड़ा का दर्पण बन जाती है

- अजय तिवारी  टी एस इलियट कहते थे कि वे बुखार में कविता लिखते हैं। उनकी अनेक प्रसिद्ध कविताएँ बुखार की उतपत्ति हैं। कुछ नाराज़ किस्म के बुद्धिजीवी इसका अर्थ करते हैं कि बीमारी में रची गयी ये कविताएँ बीमार मन का परिचय देती हैं।  मेँ कोई इलियट का प्रशंसक नहीं हूँ। सभी वामपंथी विचार वालों की तरह इलियट की यथेष्ट आलोचना करता हूँ। लेकिन उनकी यह बात सोचने वाली है कि बुखार में उनकी रचनात्मक वृत्तियॉं एक विशेष रूप में सक्रिय होती हैं जो सृजन के लिए अनुकूल है। 

आदिवासी की पुलिस हिरासत में हत्या के लिए ज़िम्मेवार पुलिस कर्मियों को गिरफ्तार करो

- शिवराम कनासे, अंतराम अवासे, माधुरी*  --- पुलिस हिरासत में आदिवासी की मौत: धर्मेंद्र दांगोड़े का परिवार खंडवा एसपी कार्यालय पहुंचा, दोषी पुलिस कर्मियों के गिरफ्तारी की उठाई मांग – आदिवासी संगठनों ने कार्यवाही न होने पर पूरे निमाड में आदिवासी आंदोलन की दी चेतावनी... --- पुलिस हिरासत में आदिवासी की मौत का खंडवा-खरगोन में तीन साल में यह तीसरा मामला – इससे पहले भी पुलिस कर्मियों को दोषी पाए जाने के बावजूद मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं हुई है – मध्य प्रदेश बन चुका है आदिवासियों पर अत्याचार का गढ़... *** धर्मेंद्र दांगोड़े की खंडवा के थाना पंधाना में हुई हत्या के संबंध में, 29.08.2024 को धर्मेंद्र के परिवार सहित आदिवासी संगठन खंडवा एसपी कार्यालय पहुंचे और धर्मेंद्र दांगोड़े की हत्या के लिए जिम्मेदार पुलिस कर्मियों की गिरफ्तारी की मांग उठाई । परिवार के साथ खंडवा, खरगोन और बुरहानपुर के जागृत आदिवासी दलित संगठन, जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस), आदिवासी एकता परिषद, भारत आदिवासी पार्टी एवं टंटीया मामा भील समाज सेवा मिशन के सदस्य ने ज्ञापन सौंप कर दोषी पुलिस कर्मियों पर हत्या का मामला दर्ज

कांडला पोर्ट पर बसने वाले मछुआरों के घरों को तोड़े जाने व उनके पुनर्वसन के संबंध में पत्र

- मुजाहिद नफीस*  सेवा में, माननीय सरवानन्द सोनेवाल जी मंत्री बन्दरगाह, जहाज़रानी भारत सरकार, नई दिल्ली... विषय- गुजरात कच्छ के कांडला पोर्ट पर बसने वाले मछुआरों के घरों को तोड़े जाने व उनके पुनर्वसन (Rehabilitation) के संबंध में, महोदय,

સિદ્ધપુર નગરપાલિકાની ગુનાહિત બેદરકારીથી મુસ્લિમ યુવાનની મૃત્યુની સઘન તપાસ થાય

- મુજાહિદ નફીસ*  પ્રતિ શ્રી, પોલિસ મહાનિદેશક શ્રી ગુજરાત રાજ્ય ગાંધીનગર, ગુજરાત વિષય- સિદ્ધપુર નગરપાલિકાની ગુનાહિત બેદરકારીથી મુસ્લિમ યુવાનની મૃત્યુની સઘન તપાસ થાય તે માટે SIT ની રચના બાબતે.

જીવનધ્યેય અનામત કે સમાનતા? સર્વોચ્ચ અદાલતનો અનામતનામાં પેટા-વર્ગીકરણનો ચુકાદો ઐતિહાસિક પરિપ્રેક્ષમાં

- માર્ટિન મૅકવાન*  તાજેતરમાં મા. ભારતીય સર્વોચ્ચ અદાલતે અનુસૂચિત જાતિ અને જનજાતિમાં અનામતના સંદર્ભમાં પેટા-વર્ગીકરણ ભારતીય બંધારણને આધારે માન્ય છે તેવો બહુમતિ ચુકાદો આપ્યો. આ ચુકાદાના આધારે ભારત બંધ સહીત જલદ પ્રતિક્રિયા જોવા મળી. ભાજપ, કોંગ્રેસ અને બીજા અન્ય પક્ષોએ તેઓ આ ચુકાદા સાથે સહમત નથી તેવી પ્રાથમિક પ્રતિક્રિયા આપી છે. સામાજિક પ્રચાર-પ્રસાર માધ્યમોમાં આ ચુકાદા અંગેને ચર્ચા જોતાં જણાય છે કે આ ચુકાદાનો  વિરોધ કે સમર્થન શા માટે કરવાં તેની દિશા અંગે એકસૂત્રતા નથી.

અનુસુચિત જાતિની ફરિયાદો ન નોંધનાર જવાબદાર અધિકારીઓ સામે કાર્યવાહી કરવા બાબત

- વાલજીભાઈ પટેલ*  પ્રતિ, મા. શ્રી ભૂપેન્દ્રભાઈ પટેલ, મુખ્યમંત્રીશ્રી, ગુજરાત રાજ્ય, સચિવાલય, ગાંધીનગર  પ્રતિ, મા. શ્રી હર્ષ સંઘવી, ગૃહરાજ્યમંત્રીશ્રી, ગુજરાત રાજ્ય, સચિવાલય, ગાંધીનગર.  વિષય- ટંકારા પોલીસ સ્ટેશન જીલ્લા મોરબીમાં અનુસુચિત જાતિની ફરિયાદો ન નોંધનાર જવાબદાર અધિકારીઓ સામે કાર્યવાહી કરવા બાબત.  સાદર નમસ્કાર.