भावानुवाद: बिपिन श्रॉफ
"मैं ईसाई क्यों नहीं हूं?" - बर्ट्रेंड रसेल
"मेरे विनम्र मतानुसार, जीसस क्राइस्ट के चरित्र में बुद्धिमत्ता और सद्गुण की जो क्षमता है, वह मानव इतिहास के कई अन्य महान व्यक्तियों में उससे कहीं अधिक थी। मैं गौतम बुद्ध और सुकरात को इन गुणों के संदर्भ में जीसस से कहीं अधिक उच्च श्रेणी का व्यक्ति मानता हूं।" – बर्ट्रेंड रसेल
बर्ट्रेंड रसेल ने 6 मार्च 1927 को लगभग 95 साल पहले नेशनल सेक्युलर सोसाइटी की दक्षिण लंदन शाखा द्वारा 'बैटरसी टाउन हॉल' में "मैं ईसाई क्यों नहीं हूं?" विषय पर अपने विचार रखते हुए ये बातें कही थीं।
1. सबसे पहले, मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि मेरे अनुसार ईसाई किसे कहा जा सकता है।
कई लोग मानते हैं कि जो अच्छा जीवन जीता है, वह ईसाई है। तो क्या इसका अर्थ यह है कि अन्य धर्मों के अनुयायी अच्छा जीवन नहीं जीते?
जो व्यक्ति विशिष्ट धार्मिक मान्यताओं का पालन करते हुए जीवन जीते हैं, उन्हें हम ईसाई कह सकते हैं। हर ईसाई दो धार्मिक विश्वासों में आस्था रखता है – एक, भगवान के अस्तित्व में, और दूसरा, अमरता (Immortality) के विचार में।
ईश्वर के अस्तित्व को तर्क (rationality) या कारण की सर्वोच्चता के आधार पर समझाने की आवश्यकता नहीं है। जैसे मुसलमान मोहम्मद पैगंबर में या हिंदू राम और कृष्ण में धार्मिक विश्वास रखते हैं, वैसे ही हर ईसाई जीसस के अस्तित्व में विश्वास रखता है।
2. जब मैं कहता हूं कि मैं ईसाई नहीं हूं, तो इसका सीधा अर्थ यह है कि मैं भगवान के अस्तित्व और अमरता के विचार को अस्वीकार करता हूं।
दूसरा, ऐतिहासिक दृष्टि से मैं जीसस को सबसे बुद्धिमान और सद्गुणी नहीं मानता।
3. हर वस्तु का एक सर्जक होता है, तो भगवान को किसने बनाया?
यदि भगवान स्वयंभू है, तो यह पृथ्वी और ब्रह्मांड भी स्वयंभू क्यों नहीं हो सकते?
4. हमारे जीवन के अनुभवों से स्पष्ट है कि अच्छे लोग बुरे लोगों के हाथों अन्याय सहते हैं।
यदि ईश्वर होता और अन्याय के खिलाफ न्याय नहीं करता, तो ऐसा क्यों होता है?
5. जीसस के उपदेशों का मूल्यांकन:
"यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे, तो दूसरा गाल भी सामने कर दो।"
"जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे।"
ये उपदेश सुनने में अच्छे लग सकते हैं, लेकिन इन्हें व्यावहारिक रूप से जीना असंभव है।
6. ऐतिहासिक दृष्टि से यह संदेहास्पद है कि क्या जीसस क्राइस्ट वास्तव में इस पृथ्वी पर ख्रिस्त धर्म के संस्थापक के रूप में रहे।
7. ईसाई धर्म के नर्क और स्वर्ग की मान्यताएं:
जीसस के उपदेशों में नर्क की स्थायी सजा और स्वर्ग का ख्याल मुख्य रूप से लोगों के भय को भुनाने के लिए इस्तेमाल किया गया।
8. नैतिकता का प्रश्न:
जो लोग जीसस के उपदेशों के खिलाफ जीवन जीते थे, उनके लिए हिंसा और प्रतिशोध को बढ़ावा दिया गया।
9. ईसाई धर्म और नैतिक प्रगति के बीच विरोधाभास:
बर्ट्रेंड रसेल का मानना था कि ईसाई धर्म ने मानव नैतिकता और प्रगति को बाधित किया है।
10. आधुनिक युग में धर्म का स्थान:
रसेल ने कहा कि धार्मिक भय से मुक्त होकर, हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। धर्म का आधार केवल लोगों के भय पर टिका हुआ है।
निष्कर्ष:
रसेल ने यह निष्कर्ष निकाला कि धर्म मानव स्वतंत्रता और नैतिक प्रगति का सबसे बड़ा दुश्मन है। हमें धर्म से इतर ज्ञान, विज्ञान और करुणा पर आधारित एक बेहतर जीवन के लिए प्रयास करना चाहिए।
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